۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
अल्लामा मंज़ूर हुसैन रजैटवी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेसी के अनुसार, अल्लामा मंज़ूर हुसैन बतारीख़ 24 रजब सन 1349 हिजरी बामुताबिक़ 15 दिसमबर सन 1930 ई॰ में सरज़मीने शिया नगर रजैटी ज़िला गाज़ियाबाद सूबा उत्तरप्रदेश पर पैदा हुए, ये इलाक़ा दौरे हाज़िर यानी (1445 हिजरी/2024 ई॰) में ज़िला हापुड में शुमार होता है, मोसूफ़ के वालिद “मौलवी सईद अहमद” भी अपने ज़माने के मुबल्लेगीन में शुमार होते थे।

मौलाना मंज़ूर हुसैन ने नमाज़ और दीनयात अपनी वालिदा से सीखी और क़ुराने करीम की तालीम­ अपने वालिद नीज़ मौलाना नासिर अली जैदी अब्दुल्लाहपुरी से हासिल की यानी आपकी इब्तेदाई तालीम वतन ही में अंजाम पाई, उसके बाद सय्यदुल मदारिस अमरोहा का रुख़ किया, फ़िर सन 1941 ई॰ में जामिया नाज़मिया लखनऊ पोंहचे और सन 1950 ई॰ में मुमताज़ुल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की।

मोसूफ़ के मशहूर असातेज़ा में से: आयतुल्लाह मुफ़्ती अहमद अली नक़वी, हुज्जतुल इस्लाम सय्यद काज़िम हुसैन, इस्लामी फ़्लासफर अल्लामा सय्यद अदील अख़्तर, बाबा ए फ़लसफ़ा अल्लामा अय्यूब हुसैन सिरस्वी और हुज्जतुल इस्लाम सय्यद रसूल अहमद गोपालपुरी वगैरा के असमाए गिरामी सरेफेहरिस्त हैं।

फ़ारेगुत्त तहसील होने के बाद नाज़मिया में छ: साल तक उस्ताद की हैसियत से पहचाने गये, मौलाना मोसूफ़ के शागिर्दों की तादाद बहुत ज़्यादा है जो अपने अपने वक़्त में नामवर शख़्सियतों के उनवान से मारूफ़ हुए, मौलाना मोसूफ़ के मशहूर शागिर्दों में: नजमुल वाएज़ीन मौलाना इबने अली रजैटवी, मौलाना डाक्टर कलबे सादिक़, अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी, मौलाना अब्बास अली नजफ़ी, मौलाना शेख़ मोहसिन अली नजफ़ी और मौलाना मोहम्मद सादिक़ बलतिस्तानी नजफ़ी के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं।

मौलाना मंज़ूर हुसैन रिफ़ाही उमूर में पेश पेश नज़र आते थे, आपने सन 1947 ई॰ अपने वतन “रजैटी” में एक कुतुबखाने की बुनयाद रखी जिसको अपने वालिद के नाम “सईद अहमद” से मोसूम करते हुए “कुतुब खाना सईदया” के नाम से पहचनवाया।

जब मौलाना मंज़ूर हुसैन ने सन 1950 ई॰ में हिंदुस्तान से पाकिस्तान की जानिब हिजरत इख्तियार की तो मज़कूरा कुतुबखाना मोसूफ़ के भाई “नजमुल वाएज़ीन मौलाना इबने अली” की ज़ेरे सरपरस्ती क़रार पाया, उन्होने सन 1978 ई॰ में इस कुतुबखाने की तजदीद कराई और उसको “कुतुब खाने सईदया जैनबया” के नाम से मोसूम किया­।

मौलाना मंज़ूर पाकिस्तान पोंहचे तो हैदराबाद में मोजूद “लतीफ़ाबाद” नामी इलाक़े में क़याम पज़ीर हुए, मोसूफ़ के आलमे हयात में आपके भाई “मौलाना इबने अली” ने आपके लिए ज़ू माना क़ता तहरीर किया जो इस तरह है

कब तलक आपके रोज़े से रहूँ दूर हुसैन

बज़मे दिल अब तो मुसर्रत से है मामूर हुसैन

कब से आँखों में लिए बैठा हूँ उम्मीद का नूर

अब तो कर लीजये अर्ज़ी मीरी मंज़ूर हुसैन

इस क़ते में मौलाना इबने अली अपने भाई का नाम “मंज़ूर हुसैन” लाये हैं जो यहाँ ज़ू माना है।

अल्लामा मंज़ूर ने सन 1952 ई॰ में मौलाना सय्यद समर हसन जैदी की हमराही में: मशारे उल उलूम” के नाम से एक मदरसा तामीर कराया, इस मदरसे में चंद साल तक तदरीस के फ़राइज़ अंजाम दिये, उसके बाद लतीफ़ाबाद में मोजूद मस्जिदे हुसैनी में मशगूले तबलीग़ हुए,­ मोसूफ़ ने बहुत औलमा अफ़ाज़िल वोज़रा, मुदीरों और प्रोफ़ेसरों की तरबियत फ़रमाई।  

मौसूफ़ की ज़िन्दगी निहायत सादा थी, हक़गोई को पसंद करते थे और सदात की बाबत ख़ास एहतराम के क़ायल थे, जवानों को अच्छी तरबियत के पेशे नज़र उनके मसाइल को हल करते थे, मौलाना गुलाम मेहदी नजफ़ी और मौलाना अब्बास अली नजफ़ी के इसरार पर “मेहदी आबाद सिंध” में मोजूद “जाफ़रया यूनिवर्सिटी” में बारह साल तक यूनिवर्सिटी की मुदीरियत के फ़राइज़ अंजाम दिये।  

मौलाना मंज़ूर हुसैन को ख़ुदावंदे आलम ने­ चार नेमतों से नवाज़ा  जिनको रिज़वान अब्बास, इरफ़ान अब्बास, रिहान अब्बास और इमरान अब्बास के नामों से जाना जाता है।

आखिरकार मौलाना मोसूफ़ बतारीख़ 18 माहे रमज़ानुल मुबारक सन 1420 हिजरी बामुताबिक़ 27 दिसंबर सन 1999 ई॰ शबे दो शंबा तक़रीबन ढाई बजे रात में जहाने फ़ानी से जहाने बाक़ी की तरफ़ कूच कर गये और नमाज़े जनाज़ा के बाद “क़ब्रिस्तान मीर फज़्ल टाऊन” लतीफ़ाबाद हैदराबाद में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया, मौसूफ़ की तारीखे वफ़ात को एक शेर में इस तरह मंज़ूम किया गया:

मग़फ़ूर हुआ मौलवी मंज़ूर हुसैन आज

फखरूल औलमा मौलवी मंज़ूर हुसैन आज

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-3पेज-255 दानिश नामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2020

ईस्वी।

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